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समास की परिभाषा क्या है ? समास का अर्थ है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नये और सार्थक शब्द को समास कहते हैं । जैसे- कमल के समान नयन इसे हम कमलनयन भी कह सकते हैं।
समास का अर्थ है ‘संक्षिप्तीकरण’।
दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नये और सार्थक शब्द को समास कहते हैं ।
जैसे- कमल के समान नयन इसे हम कमलनयन भी कह सकते हैं।
सामासिक शब्द समास के नियमों से बने शब्द सामासिक शब्द कहलाते हैं । इसे समस्तपद भी कहते हैं । समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं । जैसे- राजा का सिंहानसन यानी राजसिंहासन ।
समास के नियमों से बने शब्द सामासिक शब्द कहलाते हैं । इसे समस्तपद भी कहते हैं ।
समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं ।
जैसे- राजा का सिंहानसन यानी राजसिंहासन ।
समास-विग्रह किसी सामासिक शब्दों का खंडन समास-विग्रह कहलाता है । जैसे- रसोईघर- रसोई का घर । पूर्वपद और उत्तरपद- समास में दो पद (शब्द) होते हैं । पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं । जैसे- नीलकमल । इसमें नील पूर्वपद और कमल उत्तरपद है ।
किसी सामासिक शब्दों का खंडन समास-विग्रह कहलाता है ।
जैसे- रसोईघर- रसोई का घर ।
पूर्वपद और उत्तरपद- समास में दो पद (शब्द) होते हैं । पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं ।
जैसे- नीलकमल । इसमें नील पूर्वपद और कमल उत्तरपद है ।
समास के भेद समास के चार भेद हैं- 1. अव्ययीभाव समास 2. तत्पुरुष समास 3. द्वंद्व समास 4. बहुव्रीहि समास
समास के चार भेद हैं-
1. अव्ययीभाव समास 2. तत्पुरुष समास 3. द्वंद्व समास 4. बहुव्रीहि समास
विस्तार से- 1. अव्ययीभाव समास जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । जैसे- यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं । और भी उदाहरण- बेशक- शक के बिना यथाक्रम- क्रम के अनुसार हररोज़- रोज़-रोज़ आजीवन- जीवन-भर यथासामर्थ्य- सामर्थ्य के अनुसार यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार यथाविधि- विधि के अनुसार रातोंरात - रात ही रात में हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में प्रतिदिन - प्रत्येक दिन निस्संदेह - संदेह के बिना हरसाल - हरेक साल याथास्थिति- स्थिति अनुसार 2. तत्पुरुष समास जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं । जैसे- नवग्रह= नौ ग्रहों का समूह विभक्तियों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं- (i) कर्म तत्पुरुष (ii) करण तत्पुरुष (iii) संप्रदान तत्पुरुष (iv) अपादान तत्पुरुष (v) संबंध तत्पुरुष (vi) अधिकरण तत्पुरुष (क) नञ तत्पुरुष समास जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं । जैसे- असभ्य- न सभ्य, अनंत- न अंत अनादि- न आदि, असंभव- न संभव (ख) कर्मधारय समास जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्ववद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है । जैसे- समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समात विग्रह चंद्रमुख चंद्र जैसा मुख कमलनयन कमल के समान नयन देहलता देह रूपी लता दहीबड़ा दही में डूबा बड़ा नीलकमल नीला कमल पीतांबर पीला अंबर (वस्त्र) सज्जन सत् (अच्छा) जन नरसिंह नरों में सिंह के समान (ग) द्विगु समास जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है। जैसे- समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास विग्रह नवग्रह नौ ग्रहों का मसूह दोपहर दो पहरों का समाहार त्रिलोक तीनों लोकों का समाहार चौमासा चार मासों का समूह नवरात्र नौ रात्रियों का समूह शताब्दी सौ अब्दो (सालों) का समूह अठन्नी आठ आनों का समूह 3. द्वंद्व समास जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर और अथवा या एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- समस्त पद समास-विग्रह समस्त पद समास-विग्रह पाप-पुण्य पाप और पुण्य अन्न-जल अन्न और जल सीता-राम सीता और राम खरा-खोटा खरा और खोटा ऊँच-नीच ऊँच और नीच राधा-कृष्ण राधा और कृष्ण 4. बहुव्रीहि समास जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे- समस्त पद समास-विग्रह दशानन दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण नीलकंठ नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव सुलोचना सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी पीतांबर पीले है अम्बर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण लंबोदर लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी दुरात्मा बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट) श्वेतांबर श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती
1. अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद प्रधान हो और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं ।
जैसे- यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं ।
और भी उदाहरण-
बेशक- शक के बिना
यथाक्रम- क्रम के अनुसार
हररोज़- रोज़-रोज़
आजीवन- जीवन-भर
यथासामर्थ्य- सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
रातोंरात - रात ही रात में
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
निस्संदेह - संदेह के बिना
हरसाल - हरेक साल
याथास्थिति- स्थिति अनुसार
2. तत्पुरुष समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं ।
जैसे- नवग्रह= नौ ग्रहों का समूह
विभक्तियों के नाम के अनुसार इसके छह भेद हैं-
(i) कर्म तत्पुरुष (ii) करण तत्पुरुष (iii) संप्रदान तत्पुरुष (iv) अपादान तत्पुरुष (v) संबंध तत्पुरुष (vi) अधिकरण तत्पुरुष
(क) नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं ।
जैसे- असभ्य- न सभ्य, अनंत- न अंत अनादि- न आदि, असंभव- न संभव
(ख) कर्मधारय समास
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्ववद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है ।
जैसे-
समस्त पद
समास-विग्रह
समात विग्रह
चंद्रमुख
चंद्र जैसा मुख
कमलनयन
कमल के समान नयन
देहलता
देह रूपी लता
दहीबड़ा
दही में डूबा बड़ा
नीलकमल
नीला कमल
पीतांबर
पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन
सत् (अच्छा) जन
नरसिंह
नरों में सिंह के समान
(ग) द्विगु समास
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।
समास विग्रह
नवग्रह
नौ ग्रहों का मसूह
दोपहर
दो पहरों का समाहार
त्रिलोक
तीनों लोकों का समाहार
चौमासा
चार मासों का समूह
नवरात्र
नौ रात्रियों का समूह
शताब्दी
सौ अब्दो (सालों) का समूह
अठन्नी
आठ आनों का समूह
3. द्वंद्व समास
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर और अथवा या एवं लगता है, वह द्वंद्व समास कहलाता है।
पाप-पुण्य
पाप और पुण्य
अन्न-जल
अन्न और जल
सीता-राम
सीता और राम
खरा-खोटा
खरा और खोटा
ऊँच-नीच
ऊँच और नीच
राधा-कृष्ण
राधा और कृष्ण
4. बहुव्रीहि समास
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
दशानन
दश है आनन (मुख) जिसके अर्थात् रावण
नीलकंठ
नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव
सुलोचना
सुंदर है लोचन जिसके अर्थात् मेघनाद की पत्नी
पीले है अम्बर (वस्त्र) जिसके अर्थात् श्रीकृष्ण
लंबोदर
लंबा है उदर (पेट) जिसका अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा
बुरी आत्मा वाला (कोई दुष्ट)
श्वेतांबर
श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र) अर्थात् सरस्वती
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