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मौर्यकाल - ह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री का यात्रा विवरण पढ़ने पर हम देखते हैं कि अशोक, मौर्य सम्राट, ने यहाँ बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था। सरगुजा जिले में उस काल के दो अभिलेख मिले हैं जिससे यह पता चला है कि दक्षिण-कौसल (छत्तीसगढ़) में मौर्य शासन था, और शासन-काल 400 से 200 ईसा पूर्व के बीच था। ऐसा कहते हैं कि कलिंग राज्य जिसे अशोक ने जीता था और जहाँ युद्ध-क्षेत्र में अशोक में परिवर्तन आया था, वहां का कुछ भाग छत्तीसगढ़ में पड़ता था। छत्तीसगढ़ में मौर्यकालीन अभिलेख मिले हैं। ये अभिलेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं।
सातवाहन काल - यह काल 200 ई० पूर्व से 60 ई० पूर्व के मध्य का है। सातवाहन वंश के राजा खुद को दक्षिण पथ का स्वामी कहते थे। वे साम्राज्यवादी थे। सातवाहन वंश के शतकर्णि (प्रथम) अपने राज्य का विस्तार करते हुए जबलपुर पहुँच गये थे। जबलपुर तक उनका राज्य था। कुछ साल पहले बिलासपुर जिले में कुछ सिक्के पाए गये हैं जो सातवाहन काल के थे। बिलासपुर जिलो में पाषाण प्रतिमाएं मिली हैं जो सातवाहन काल की हैं। बिलासपुर जिले में सक्ती के पास ॠषभतीर्थ में कुछ शिलालेख पाए गये हैं जिसमें सातवाहन काल के राजा कुमारवर दत्त का उल्लेख है । ह्मवेनसांग, प्रसिद्ध चीनी यात्री अपने यात्रा विवरण में लिखते हैं कि नागार्जुन (बोधिसत्व) वहां रहते थे।
वकाटक वंश - छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में एक ताम्रपत्र मिला था कुछ साल पहले। वह ताम्रपत्र वकाटक वंश का है। वकाटक वंश बहुत कम समय के लिये छत्तीसगढ़ में था। प्रवरसेन (प्रथम) जो वकाटक वंश के राजा थे, वे दक्षिण कौसल पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। पर इनकी मृत्यु के बाद वंश का आधिपत्य खत्म हो गया और यहां गुप्तों का अधिकार स्थापित हो गया।
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